By Keertiraj Singh Solanki
तीन पत्ते साथ मैं
एक हरी डाल पे
डाल पे
साथ में
लम्हा गुज़ारे हर
रात में
हर एक सफर
कटे हर पहर
तीन पत्ते डाल पे
हर गड़ी साथ में
बदले मौसम
पतझड़ आया
सूरज ने पत्तों को तपाया
तपती धूप ने उनको सुखाया
पत्ते अपनी डाल पर
पार किये थे जो सफर
हुए यूँ पतझड़ से बेखबर
टूटे सपने साथ के
हर सौगात के
तीन पत्ते डाल पे
हर गड़ी साथ में
राही मिले न कोई
राह मैं
पत्तों ने अपनी डाल जो खोई
बिखरे ज़मीन पर
ओर,
एक दूजे संग अलग जो होई
तीन पत्ते डाल पे
हर गड़ी साथ में
किये जो वादे ज़मीर से
जो न मिले
मिले तो झील मैं
नही तो किसी की तहरीर मैं
मिलने की इसी उम्मीद मैं
तीन पत्ते डाल पे
हर गड़ी साथ में
-------------------------------------------------------------------------------------------
This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Indian Summer'
the perfect image of a family!! suriving through
Man moh liya… aapne.. 😍