आज गंगा को देख मन में विचार आया
इसमें गोताखोरी कर
पवित्र हो जाऊंगा या अपवित्र ?
इस जमुना में असथी विसर्जन कर आज
दादा को शांति मिलती या अशांति
ना जाने उसका कारण
था वह बढ़ती आबादी
या वह बढ़ती आबादी का प्रदूषण
या वह बढ़ते उद्योग
या वह बढ़ते उघोग का प्दूषण
कल मानो जिसने मुझे छाय दी
वह वन आज एक साएं की आंस कर बैठा है
वह जिस मिट्टी से जन्म लिया
वह आज एक बार जीने की इच्छा कर बैठी है
कह रही है
वह बिगड़ती पृथ्वी मां
ए इंसान मुझे जीने तो दे
मेरा तू उपयोग कर ना कि दुरपयोग
क्योंकि तेरी ही मां की तरह पृथ्वी मां हूं तेरी
मुझे ना तोड़, यदि एक बार टूट गई
तो वापस बन तो जाऊंगी
लेकिन फिर भी ना बन पाउंगी फिर तेरी
क्योंकि मैं परिवर्तित सी हो चली हूं
ना जाने किस दिन थम जाऊंगी
और दूर ना होगा दिन
जिस दिन तुम खुद आंसू बहा कर
विनती करोगे ए पृथ्वी मां
आज मुझे बचा ले
और मैं बस कहुंगी
मेरा शोषण ना करते तो
तुम्हारा भी आज शोषण ना होता ।