बाप की क़ुर्बानी

फ़ैज़ान महमूद 'हुसैन' लखनवी
ख़ुद धूप में खड़ा रह कर जो तुम्हे छत देता है
तेरे नाम को नाम देकर भी बेनाम सा रहता है
कभी शक ना करना उसकी मेहनत-कशी पर
तेरी हर ज़िद को वो बे-लौस सा पूरा करता है
ऐसी शख्सियत को बयां घर नहीं ज़हाँ करेगा
जो ज़्यादा ज़िंदगी घर से बाहर गुज़र करता है
रौशनी की ज़रूरत उसे भी है शाम ढल जाने पे
जुगनू के मानिंद अपनी औलाद को समझता है
क्यूँ औलाद छोड़ देते हैं साथ आख़िरी वक़्त में
यह इंसां मरने के बाद अपना नशेमन छोड़ता है
रहेगा मलाल 'हुसैन' को ज़िंदगी भर इस बात का
औलाद अपने बाप का हक़ अदा न कर पाता है

6 comments

  • Good

    Syed Hasan Kazmi
  • Nice. Well said…

    Fakhre Alam
  • Absolutely true

    Amaan Mahmood
  • Fact!!

    Asif
  • Absolute True…..

    Shah Saud Khan
  • Nice and true

    Narendera Kumar

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