अजय चंद्रकांत लगशेट्टी
उतर गई मेरे दिल में ,
आसमाँ की वो चांदनी।
कर गई वो रोशन पूरी,
अँधेरों से भरी मेरी जिंदगी।
सोचा न कभी था,
वो पल भी आएगा।
सोचा न कभी था,
उन पलों में खो जाऊँगा।
खोता रहा उन आँखों में,
आँखों से आँखें न हटा के।
नजरों से नजरें जब मिला दिए,
बिजलियों से बादल बरस गए।
सोचा न कभी था,
मंजिल भी मिल जाएगी।
सोचा न कभी था,
आसमाँ भी मेरा हो जाएगा।
भरोसे उस सितारे,
सजाया मेरे अरमानों को।
भरोसे उस रोशनी के,
बूँदता रहा मेरे ख्वाबों को।
लेकिन,
सोचा न कभी था,
उस चांदनी का भी चाँद होगा।
सोचा न कभी था,
चाँद-सितारे का प्यार होगा।
सुनके टूट गया ये दिल,
तड़पता रहा वो हर दिन।
फिर भी,
संभालता रहा खुद को,
जुटाते बिखरे अरमानों को।
सोचा न कभी था,
ये पल भी आएगा।
और
ये पल
बस " पल " बन के जाएगा।
Very nice poem
Ajay