By Preety Goyat
खूद को ही नहीं समझता
शायद बहोत बदल गया हूँ मैं
साथ होते तुम जो मेरे
यकीनन वही रहता
छोड़ दिया जो तुमने हमे
थोड़ा मचल गया हूँ मैं
शायद बहुत बदल गया हूं मैं
चहेरे पर ये मायूसी
छाई रहती है हरदम
हँसता रहता था हर पल
थोड़ा अम्ल गया हूं मैं
शायद बहुत बदल गया हूं मैं
नादान थे हम जो तुम्हे
दिल से अपना माना था
ये गलती अब ना होगी
थोड़ा संभल गया हूँ मैं
शायद बहुत बदल गया हूँ मै
खुद को ही नहीं समझता
हां बहुत बदल गया हूँ मैं
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'An Experience That Changed My Life'
It’s difficult to pen down ur emotions but uh did it beautifully…🌸☺️
Don’t change urself for someone who don’t care for uh..😌