Varsha Singh Tomar
क्रोधित हूँ , आक्रोश है
ना जाने कैसी सोच है
नक़ाब में छिपा है दरिंदा
और गली गली में शोर है
ना हमदर्दी ना अपना पन
ये स्वार्थ की भूखी फ़ौज है
हर कोई अपनी धुन में लगा है
और सही के पीछे रोक है
ये अत्याचारी आदमी
हर पशु के लिए शोच्च है
असूलो का पक्का बिल्कुल नही
हर लड़की के लिए दोष है
ये जिस्म का सौदा करने वाला
ये आदमी दुष्टखोर है
दोगला इंसान यहाँ
जात पात का खोज है
प्यार की मिसालें देकर
गला घोट ता रोज़ है
ज़मीन और ज़मीर को बेकता
ये आदमी अफ़सोस है
मैं क्या कहूँ क्या ना कहूँ
ये आज भी संकोच है
मैं ना ग़लत ना हूँ सही
एक हूँ कवि एक सोच है
क्रोधित हूँ , आक्रोश है
ना जाने कैसी सोच है