मेरी शोखियाँ

By Shreya Paul

मेरी शोखियाँ मेरी बेआबरू ज़ंजीर बन गई ,
बेखयाली मेरा मंज़र बन गई ।

मुझमे लेहर की हलचल बनी थी
उसमें साज़िश की दलदल बनी थी।

मेरी हर चाहत की हिमायत थी हिमाकत,
सूखे शाख की तरह झुलस रही है क़यामत ।

ख़िज़ाँ की आवाज़ ही मेरी पहचान है
माश्रे की धूल हर ज़र्रे का मुकाम है ।

सूनाई देती है क़यामत की सरगोशि ,
बस दिख रही है दिये के जलने की फरामोषी ।

तजल्ली –ए-मुक़दर जाने है कहाँ ?
फ़ना हो गया मेरा केकशाँ ।


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