By Mohini Bhatia
मिथ्य – तथ्य Dated: 04.02.2024
जैसे झूठ में है सच छिपा
हर ग़लत में सही है छिपा!
जैसे मिट्टी में सोना है छिपा
और मुट्ठी भर बीज में पूरा खेत है पड़ा
हर बंजर में उर्वरा है दबा!
ये छिपने- छिपाने की प्रथा
क्या कलयुग में ही आई
और क्यों ही तुमने चलाई!
कुछ मिथ्य नहीं
सब तथ्य है!
जब सारा जग सो जाता है
आकाश नैना मटकाता है
और चांद दुधियायी रोशनी में सहला के जाता है
परियाँ पंखी बन उड़ती हैं
सपनों का श्रृंगार वो करती हैं!
तभी तो
हवा का इक झोंका
खुशबू सी छोड़ के जाता है
और
पहली किरण में
हर जवाब दे जाता है!
इसलिए कुछ मिथ्य नहीं
सब तथ्य है.. सब तथ्य है..
(मोहिनी भाटिया)