BY ANURADHA
छत पर बैठी एक बार वो देख रही थी चिड़ियों को,
चहचहाती देखा उनको मन में आया एक खयाल
अगर जो होती मैं भी चिड़िया उड़ जाती लहरों के पार।
ना कोई बंदिश न कोई सरहद बस होते मैं और मेरा संसार।
छत पर बैठी एक बार वो देख रही थी बच्चों को,
खेलते, चिल्लाते, मुस्कुराते बच्चों को देख, मन में आया एक सवाल
क्यूं मैं इतनी बड़ी हुई हूं, क्यूं मेरा बचपन गया
जो होती मैं बच्ची अब भी, करती शैतानी अब भी
पापा की उंगली पकड़ कर घूम आती मैं बाजार
मां के आंचल में सो जाती, क्या होता मेरा संसार
छत पर बैठी एक बार वो रो पड़ी सोच अपना हाल
सोच रही थी क्या जीवन है देखे जब खुला आसमां
आज इसी छत पर बैठकर सोच लिया उसने भी यार
नहीं रहूंगी बस इस छत पर, मैं भी नृत्य करूंगी यार
चिड़िया बन कर बच्चा बन कर, करूंगी इन लहरों को पार करूंगी इन सरहदों को पार
बस हंस कर जीवन जीना है, यही है अब मेरा संसार।