क़तरा क़तरा

By Maulshree 

अश्क़-ऐ -मंज़र  लिए  नज़रों  में  
हम  हँसते  चले  गए  
काँटों भरी राहों  में 
हम  चलते  चले  गए |
 
नाराज़गी  उनसे  थी  या  खुदसे  
ये  समझ  ना  पाए  हम  
ख्यालों  से  अपने  हकीकत  में  
हम  लड़ते  चले  गए  |
 
उनकी  खुशियों  के  खातिर  
गम  भुला  दिए  अपने 
दुआओं  का  पैमाना  
हम  भरते  चले  गए  |
 
वाक़िफ़  हुए  जो  उनसे  
अनजान  खुद  से  हो  गए 
भूला के  खुदको  उन्हें 
हम  याद  करते  चले  गए | 
 
अल्फ़ाज़ों  में  अपने 
ख्यालों  को  उनके 
दास्ताँ -ऐ -हयात  बराबर 
हम  लिखते  चले  गए |
 
आशना  में  उनकी 
तन्हाई  के  साथ  
ज़िन्दगी  क़तरा  क़तरा  
हम  जीते  चले  गए |

5 comments

  • पर कहा चले गए ?

    Siddharth Sharma
  • Unke khayalon se unke
    Alfaazon tak
    Khamoshi se sab kuch
    Hum sunte chale gaye…??

    Arshid
  • Nice poem Maulshree.

    Ajay Sahai
  • Lovely .. Wonderful art or words.

    Hemant Joshi
  • So beautiful ❤….can feel the emotions behind every line.

    Choden

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