By Tez Mago
रेस ट्रैक के किनारे दो बचपन खड़े थे...
एक पैरों में पहिये बांधे,
हाथों में चाय की इक प्याली थामे...
अलसाई हुई आखों में कल के सपने लिए,
सुबह सुबह जगाये जाने से थोड़ा सा नाराज़ सा,
दूसरा पैरों में मज़बूरी बांधे,
हाथों में चाय की इक केतली थामे...
अलसाई हुई आखों में आज की जिम्मेदारी लिए,
सुबह सुबह जगाये जाने से थोड़ा सा नाराज़ सा,
रेस ट्रैक के किनारे दो बचपन खड़े थे....
- तेज़