रद्दी ख़्याल

By Nishu Mishra

"जब तुम किसी कि कहानी लिखना...
सुख के गुब्बारों के साथ
दुःख कि सीमा भी लिखना.
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समृद्धि के बगीचों के साथ
लिखना रास्तों का अभाव
कुछ पाने के लिए खुद में किए गए ढेरों बदलाव.
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बीते समय कि खुशहाली लिखना,
आने वाले समय कि बेताबी लिखना,
और चल रहे समय कि घुटन भी लिखना.
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बाहर से मौन तो अन्दर कि अशांति लिखना,
बार- बार गिर कर उठने वाली
वो क्रांति भी लिखना.
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बिना जानकारी के उसके बारे में
राय बना लेने वाले समाज
की बात लिखना,
समाज से दूर हुए बिना,
चलते रहने वाले
उसके जज़्बात भी लिखना.
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काम के कारण अपनों को समय
ना दे पाने वाला विलाप लिखना,
सुख का जरिया और दुःख की नींव
""वो काम"" कि थकान भी लिखना.

बस मत लिखना उस कहानी का अंत,
""अंत में सब सही हो जाता है ""
जीवित रहने देना ये भ्रम...."


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