नया सवेरा

By Aaditya Patni

जन्म है ये मृत्यु का, या जन्म की है मृत्यु आज
शुरुआत का है अंत, या है अंत की शुरुआत आज

हल्का सा अंधेरा है, है थोड़ा सा उजास भी
रात खत्म हो रही, होने की भोर आस भी

बदल रहा है रंग गगन, स्याही सी फैली राख की
कोयले सा काला था, अब लालिमा जैसे लाख की

शोर था सन्नाटे का जो, खगों ने उसको चुप किया
आज़ाद होके भूमि से, लगाते नभ में डुबकियाँ

सोए पड़े थे वृक्ष जो भी, वो भी आज जग गए
झूमते यूँ जोश में, कल कहते थे जो थक गए

परिवर्तन है कुछ आ रहा, हवाएँ ज़ोरों चल रही
बह गई बवंडरों में, शंकाएँ जो थी पल रही

सब ताकते क्षितिज को, कुछ प्रारम्भ होने जा रहा
जले आकाश सूर्य से, है चाँद सोने जा रहा

रौशनी विजित हुई, इस युद्ध में बदलाव के
ढ़ल गये वो बच गए, ठूठ हवाले अलाव के

दिन है ये नया सा अब, आँखों में स्वप्न रात के
कर्म का समय है ये, बीते जो युग थे बात के ।


9 comments

  • Too Good Bhai…
    Keep on writing.

    Shubham
  • Wah

    Manoj Kumar Sharma
  • Bahut hi achi kavita h very very nice Akku

    Sangeeta jain
  • बहुत ही शानदार जीवंत कविता है

    Deependra Kumar Jain
  • Very deep.

    Aditi Jain
  • सूर्योदय से पूर्व के समय का सटिक वर्णन

    सीताराम मीना उप प्रधानाचार्य
  • Very very good

    Labhchand Jain
  • वाह! शानदार, जानदार प्रकृति का वर्णन है।
    खासकर ऊषा के समय का।

    सांवर मल पाटनी
  • Wahh Aditya , great

    Dr jenual

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