एक बीज का संघर्ष

By Mangesh Gupta

बीज बेकरार है
समय का इंतजार है

मिट्टी के नीचे दबा हुआ
वह सोया है सपनों में है
अब से ही गिनता आसमान
की चिड़ियों को अपनो में है
अब से ही डूबा इस विचार में
कितना सुख है बरखा के प्यार में
तन तो गहराई में बैठा
मन ऊँचाईयों में क्यों शुमार है।

बीज बेकरार है
समय का इंतजार है

सुप्तावस्था में लेटा है
अंकुर ये फूट नहीं सकता
मौसम बदले तब जागेगा
नियम ये टूट नहीं सकता।
आया पहले ही बाहर तो
फिर वृक्ष न बनने पाएगा
टूटेंगे सुंदर स्वप्न सभी
फिर मन ही मन पछताएगा
योजनारहित लक्ष्य हो तो
कुछ नहीं है वह बस एक विचार है

बीज बेकरार है
समय का इंतजार है

है बीज वही मानव जिसने
समय चक्र समझा ही नहीं
जो पथ सरल दिखता है वह
है कितना वक्र समझा ही नहीं
प्रतिकूल परिस्थितियों में बीज
गर अंकुरित होना चाहेगा
कोमल सा नया बदन कैसे
इतनी पीड़ा सह पाएगा
आकृतियां जब भी महान बनी
धैर्यवान रहा हर चित्रकार है

 


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