Suicidal सोच

By Jeet Singh

एक बेचैन सी आह निकलेगी, जब सीने के अंदर से,
उस पल मै सबकुछ छोड़कर, कुदूंगा मौत के समंदर में।
ना चेतना होगी, ना ही तड़प, तब सबकुछ थम जाएगा,
आत्मबोध की ना चिंता होगी, मन शांति पाएगा।

ग़र यही सोच है तुझमें भी, तो लक्षण ये ठीक नहीं,
खुद के जीवन से ही डर जाएं, तू इतना भी Weak नहीं।
तू इतना भी Weak नहीं।

फिर भी अगर ख्याल आए, आत्मदाह करने का,
मै कौन हूं रोकने वाला, बेशक़ कर लेना।
पर ना शांति तुमको यहाँ मिलेगी, ना ही उसके दर पे,
बोलती हो जाएगी बंद,सामने ईश्वर के।
पुण्य पाप का लेखा जोखा, फिर जब वो खोलेगा,
कितने ही पुण्य हो, पर ये महापाप भी जोड़ेगा।
वो सोचेगा, यूँही प्राण डाला, मैंने इस बेजान में,
ये नज़रें फिर ना उठेगी तुझसे, तेरे ही सम्मान मे।

ग़र यही सोच है तुझमें भी, तो लक्षण ये ठीक नहीं,
खुद के जीवन से ही डर जाएं, तू इतना भी Weak नहीं।
तू इतना भी Weak नहीं।

फिर दो पल को याद करेगा, तू अपने संसार को,
वो ज़िल्लत भरी जिंदगी, जिसमे झोका है परिवार को,
एक तेरा ही तो साथ था उनको, तड़प वो ना सह पाएंगे,
नेत्र-जल की धारा बहेगी, कैसे ह्रदय को समझाएंगे।
फिर ऊपर से ही देखना, अंतिम-क्रिया का लाइव Telecast,
सांत्वना तो देंगे सब पर, कोई होगा ना इज्जत का Cause,
फिर धीरे धीरे हो जाएगी, Dead body मिट्टी मे Cast।

ग़र यही सोच है तुझमें भी, तो लक्षण ये ठीक नहीं,
खुद के जीवन से ही डर जाएं, तू इतना भी Weak नहीं।
तू इतना भी Weak नहीं।

तुम्हे लगेगा, मिल जाएगी, अब तुमको मुक्ति,
पर कैसे कहूं, क्याँ होगी, आगे उस रब्ब की युक्ति।
जीवन की तकलीफों से जो बन्दे हारे,
लेजाके उनको, वो छोड़ देता है नर्क के द्वारे।
क्यूँ जहां में जीना, लगता है तुझको धोखा,
यूँ ही ना तू घोंट गला, सपनों का।
जो थोड़ा भी यकीन जागा, तो छोड़ ये इच्छा मरने की,
चल उठ जा ज्यादा सोच मत, ये वक़्त है दास्तां गढ़ने की।

ग़र यही सोच है तुझमें भी, तो लक्षण ये ठीक नहीं,
खुद के जीवन से ही डर जाएं, तू इतना भी Weak नहीं।
तू इतना भी Weak नहीं।


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