By Kshitij Tripathi
तेरी आवाज़ के साज़ पर,
हवाओं से खुद को जोड़ लेता हूँ।
अश्क जो तेरे आँखों की दराज़ छोड़ दें,
तो निवालों से मुह मोड़ लेता हूँ।
खिलखिलाहट तुम्हारी सुन कर,
दुनिया से इश्क सा कर लेता हूँ।
तेरी झलक जो मिले कभी,
तो नज़ार-ए-हुस्न को खुद पर ओढ़ लेता हू।
दिल को कुछ यूँ लगाया तेरी इबादत मे,
के बगैर सुकून भी , अब सो लेता हूँ।