Ek akhiri khat

By Palak Garg  

 

मैं दर्द की ज़ंजीरें तोड़, परिंदा बन उड़ गया,
उस आसमान में जाकर मैं और निखर गया।
तुम उदास न हो नl मुझे उड़ता देख,
मैं तुम्हारा हमसफ़र तुम्हारे लिए एक आख़िरी ख़त छोड़ गया।

ग़लत कह गए लोग कि मैं तुम्हें छोड़ के चला गया,
तुम्हारे हर धड़कन में, मैं जाके दफ़न हो गया।
झूठ कहते हैं सब कि मैं हूँ नहीं यहाँ,
इक बार इस अंधेरे को तो देखो, तुम मेरे चंदा और मैं तुम्हारा सबसे क़रीब वाला सितारा बन गया।

बस तुम अपनी आँखें नम न करना,
मेरी कमी तुम कभी महसूस न करना।
मैं तुम्हारे साथ तब भी था और आज भी हूँ,
बस तुम इसे मेरा आख़िरी अलविदा न समझना।

याद रखना कि हम फिर मिलेंगे,
ज़िन्दगी की एक नई कहानी फिर लिखेंगे।
हर जनम में साथ तुम सिर्फ़ मुझे पाओगी, ये वादा रहा,
तब तक के लिए हमदोनों एक जिस्म एक जान होके सब फिर संभाल लेंगे।


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