By Dr Manu
"वो कहती है ….
सदियों से है मुझे इश्क़ तुमसे, बेवजह सा, बेतहाशा सा,
कभी राम की सीता सा तो कभी कृष्ण की राधा सा ।
किसी युग में बिछड़ेंगे हम तो कभी एक हो जाएँगे,
हर एक जन्म में प्रेम का नया गीत, नई कहानी रचाएँगे ।
किसी जन्म राम की पुजारिन बन जाऊँगी,
तो कभी कृष्ण की बाँसुरी के साथ गीत सुनाऊँगी ।
कभी रघुवीर संग अवध में खेलूँगी होली,
किसी जन्म श्याम रंग चढ़ा बनूँगी राधा गोरी ।
कभी वनवास भी जाऊँगी मैं साथ तुम्हारे ,
तो कभी तुम्हें पाकर, सताऊँगी गोपियों को करके इशारे ।
किसी जन्म तुम्हारे लिए अग्नि परीक्षा भी सह जाऊँगी,
कभी रुक्मणी को पाकर साथ तुम्हारे,चुप भी रह जाऊँगी ।
जब राम सीता बन हम मिलेंगे तो फूल खिलेंगे महकते हुए से,
साक्षी होंगे हमारे प्रेम के, ये नदियाँ, ये पर्वत, ये पक्षी चहकते हुए से ।
जब राधा कृष्ण बन मिलन अधूरा रह जाएगा,
रोएँगे ये धरती,ये आसमान, दरिया बह जाएगा ।
जब जब आऊँगी धरती पे जन्म लेकर मैं ,
हर क़दम साथ रहूँगी, जाऊँगी ये क़सम देकर मैं ।
हर जन्म प्यार करूँगी तुमसे ही, बेवजह सा , बेतहाशा सा,
कभी राम की सीता सा, कभी कृष्ण की राधा सा।।
जवाब में उन्होंने कहा…
प्रिय! प्रेम मुझे भी कम तो नहीं तुमसे, है बेवजह, बेतहाशा सा ही,
कभी जानकी के राघव सा तो कभी राधा के माधव सा ही।
हाँ ,हम बिछड़ेंगे अगर तो कभी एक भी हो जाएँगे,
प्रेम के सुरीले गीत हर जन्म में ही गाएँगे ।
किसी जन्म मेरे बाण और सहजता देख मोहित होना तुम,
कभी मुस्कान और मोरपंख तो कभी बाँसुरी की धुन में खोना तुम।
किसी जन्म तुम्हें अपना बनाऊँगा मैं शिव धनुष तोड़कर,
जमुना किनारे कभी तुम्हें सताऊँगा मैं मटकी फोड़कर ।
छलावा जानते हुए भी, मृग को पकड़ करूँगा पूरी तुम्हारी हठ,
तुम्हारे सम्मान के लिए दशाननन रावण का भी मैं करूँगा वध।
किसी जन्म तुम्हारे सम्मान के लिए ही वर्षा बाँसुरी की करवाऊँगा,
और जग को ‘राधा ‘ , कृष्ण से पहले बोलने को विवश कर जाऊँगा ।
जब हम मिलें, बँधे विवाह बंधन में तो उसे विधि का विधान समझना,
किसी जन्म बिछड़ें तो भी सब्र रखना प्रिय, नियति का प्रसाद समझना ।
अग्नि परीक्षा देख तुम विचलित ना होना, विश्वास मुझे तुम पे पूरा है,
हूँ बेशक रुक्मणी संग मैं किन्तु राधा बिना कृष्ण अधूरा है ।
जब भी जन्म हो धरती पर मेरा, तुमको ही मैं मेरी पूरक पाऊँ,
हर युग तुम्हारा साथ मिले, यह वरदान मैं लेकर जाऊँ ।
हर जन्म रहेगा मुझे तुमसे ही इश्क़ प्रिय, बेवजह, बेतहाशा सा ही,
कभी जानकी के राघव सा तो कभी राधा के माधव सा ही ।।"