गोदी का शृंगार

By Bimala Sharma 

 

गोदी का शृंगार

शीतल चन्द्रकिरण सा लगता,
मनमोहक कोमल रूप तुम्हारा।
तेरी एक मुस्कान पे वारूं,
सुरभित सौरभ जीवन का सारा।

सुना के लोरी तुझे सुलाती,
रोना सुनकर दौड़ी आती।
बाहों में भरकर तुझको
मेरे लाल तुझे मैं बहलाती।

देख देख तेरी बाल कलाएँ,
हरदम मन मेरा मुस्काए।
हुलसित लिए गोद में फिरती,
निरख निरख मन सुख पाए।

मानसरोवर के अंतस में,
बनकर नीरज फूल खिला है।
आलोड़ित आनंदित होता,
ममता का सागर गहरा है।

कोमल और सुकुमार है प्यारा,
मेरी तू आँखों का तारा।
कल के सपने आज की आशा,
नव प्रभात सा तू उजियारा ।

किलकारी सुन दौड़ी आऊँ,
नाजों से तुझे गोद उठाऊँ।
तुझमें में बसते प्राण हमारे,
तुम ही सूरज चाँद सीतारे।

जीवन धन उपहार मिला है,
तेरे जैसा लाल मिला है।
ईश्वर तेरी परम कृपा से,
गोदी का शृंगार मिला है।

विमला शर्मा "बोधा"


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