By Dr. Bhawdeep Singh Munjal
"क्यों भुला बैठे हैं हम, सपूत शहीदों की कुरबानी...
क्यों भुला बैठे हैं हम, सपूत शहीदों की कुरबानी ....
चीख-चीख कर कह रही है, आज़ाद हिन्द की फिज़ा विरानी...
क्यों भुला बैठे हैं हम, सपूत शहीदों के वह सपने, (2)
देकर खून जिगर का, सजाए थे अखंड भारत के वह सपने...
क्यों भुला बैठे हैं हम, आज़ाद भारत का वह दृष्य...(2)
किया था कुर्रबान वर्तमान अपना, बनाने को हमारा भविष्य...
क्यों भुला बैठे हैं हम, शहीदों की वह फाँसी,(2)
हिन्दू, मुसलम, सिख, ईसाई, हैं सबसे पहले भारतवासी...
क्यों करते हैं हम रहते, धर्म के
नाम पर दंगा फसाद,(2)
मिल कर साथ रहना, क्यों नहीं रहता हमको याद...
क्यों भुला बैठे हैं हम, कि एकता में ही है शक्ति,(2)
कर रहा है, खूने-ए-शहीदाँ, यह
अभिव्यक्ति...
क्यों फैला रहे हैं हम, भारत में भ्रष्टाचार,(2)
कैसे कर पाएगें हम, कभी शहीदों से आँखे चार...
क्यों भुला बैठे हैं हम कि, हिन्दी ही भारत की बिंदी है,(2)
राष्ट्रभाषा के बिना, भारत वर्ष चिन्दी-चिन्दी है...
बंट जाओगे, कट जाओगे, तुम आज इन तूफानों में,(2)
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में...
संभल जाओ, ए भारत के दुष्ट गद्दारों,(2)
यह है वक्त की परवाज़, देश के कर्जदारों...
आओ 'मुंजाल' आओ, खाएँ कसम आज बढ़िया,(2)
बना के रहेंगे 'भारत' को, वही सुन्दर सोने की चिड़िया..."