BY ANKITA SINGH
पगडंडी के अंतिम पग पर
वट का था एक वृक्ष विशाल ।
रक्त वर्ण की पत्र मंजुषा
जिसके तल में खड़ी निढाल।।
हर भोर रवि की किरणों के संग
उठता वट , उसका परिवार ।
जंग लगे उस श्याम - शीश पर
छा जाती थी चमक निहाल।।
सुबह सुनहरी, नए दिवस का
मुस्काकर कभी सत्कार।
रक्त वर्ण की पत्र मंजुषा
नव चुनौतियों को तैयार।।
वट से उतरी मूढ़ गोरैया
कभी - कभी करती उपकार।
बैठ शीश पर , चोंच मार कर
'टक - टक , टक - टक', पूछे हाल।।
पगडंडी पर सुबह शाम थे
पथिक अनेकों आते ।
पर उनपर कुछ ऐसा न था
जो उसको भी दे जाते ।।
यदि किसी ने भूलचूक वश
कृपा की उसपर नजर डाल ,
रुका नहीं वह दो पल, केवल
हँसा देखकर उसका हाल ।
चली हवा , बरसात हुई
चमका सूरज वर्चस्व दिखाए ।
रक्त वर्ण की पत्र मंजुषा
खड़ी रही मुस्काए ।।
जीर्ण शीर्ण जीवन का उसने
कभी न शोक मनाया ।
पर कुछ प्रश्न किए उससे
जिसने था उसे बनाया ।।
"कागज के छोटे टुकड़ों में
रहता था कितना प्यार भरा !
क्या नहीं चाहिए तुमको अब
वह प्यार , दुलार, लगाव जरा?"
कुछ सीधी, आड़ी-टेढ़ी रेखाएँ
कितना सब कह जाती थी!
क्या नहीं चाहिए अब तुमको
वह मधुर महक जो आती थी ?
लिखने बैठो तो कलम साथ दे
ज्यादा ही लिख जाती थी!
पढ़ने वाले की खुशी सोंच
आँखें छल - छल हो जाती थीं।
पहचाने से अक्षर छूकर
ऐसा लगता छू लिया उन्हें
क्या नहीं चाहिए अब तुमको
एक अपने का वह स्नेह - स्पर्ष ?
जब छोटा सा बक्सा निकला
एक नए पत्र को रखने को,
क्या नहीं चाहिए पुल्कित मन
देखकर, प्यार भरे वो खत ढ़ेरों ?'
जाने उसके प्रश्न किसी ने
सुने भी या न सुन पाए !
रक्त वर्ण की पत्र मंजुषा
खड़ी रही मुस्काए ।
“A fabulous piece of writing.”
It’s like an end of a golden era, the red letter box which was a hope for some and love for others… which was full of emotions, thoughts and feelings..
thank you Mrs Prashant for this message through your poem because it is very much needed.
The poem is about a red letter box. Plz change the image so that the reader can relate to it.