BY ANKITA SINGH
दुहिता, जब तूने जन्म लिया
और आई मेरे हाथों में ,
मैंने तुझको यह वचन दिया
सुन ले मेरी इन बातों में I
मेरी माँ ने जो नहीं कहा
वह सब अब तू मुझसे सुन ले,
सौभाग्यकांक्षिणी, धीर नहीं
जीवन-रण का तू वीर बने I
कुल का मेरे कुलदीपक तू
सूरज सा तुझमें तेज जगे,
कुछ ऐसा करे दुहिता मेरी
संसार में जो रश्मि भर दे I
साहस तेरा आभूषण हो
अंतर्मन, दर्पण बन दिखा सके,
कुछ ऐसी हो दुहिता मेरी
भेड़ों की भीड़ में सिंहनी सी I
तू तीर चला, तलवार उठा
वह कर जो करना चाहेगी ,
आरण्य काटकर, मार्ग बना
तू स्वयम् बढ़े आह्लादित सी !
किसी और के घर का नूर नहीं
मेरे घर का उजियारा तू,
प्राणों का मेरे है टुकड़ा
मेरी आँखों का तारा तू I
एक तुला है सबके पास यहाँ
जो तुझको कम कर तोलेगी,
वह तुला तोड़ने में दुहिता
मैं भी हूँ तेरे साथ खड़ी I
अरमानों, एहसानों का जग
तुझ पर घूंघट डालेगा,
सीमाएँ तेरी तय करके
कर्तव्यों तले दबा लेगा,
फिर ऐसे ऐसे शस्त्र लिए
हर ओर से तुझपर टूटेगा,
भयभीत न हो दुहिता मेरी
शत्रु का दंभ ही छूटेगा!
उन सब की बात न सुनना तू
वे तेरे बल से डरते हैं,
रेखाएँ खींच, रीतियाँ बना
तेरे पौरुष से लड़ते हैं I
करुणा, ममता हर मनुज में हो
यह केवल तेरा काम नहीं,
जीवन जीने को मिला तुझे
समझौते का यह नाम नहीं I
जब अपने ही व्यवधान बनें
तेरे अधिकार न तुझको दे,
तब मोह के आड़म्बर को हटा
उनपर अपना गांडीव चला I
अपनी माँ का आशीष तुझे
जग से लड़ के लेना होगा,
जो तुझको कम कर आँक रहे
उनको उत्तर देना होगा I
साहस, असीम बल है तुझमें,
फिर भी यह तुझसे कहती हूँ,
है जीवन-पथ आसान नहीं
मैं आज भी अपने रण में हूँ I
अपनी शक्ति पहचान शीघ्र,
यह रण आसान नहीं होगी,
पर अडिग अटल विश्वास मेरा
मेरा अर्जुन तू ही होगी।