यू तो खुशियां ,
आती - जाती रहती !
न घर, न कोई ठिकाना उसका रहता !
एक जगह उसका ,
घर बसाना भी नहीं होता !
पर वो लम्हा, मेरा था ,
खुशियों से भरा ,
आज तक रहा !
जिस पल वो पराए से ,
अपना बना था ।
कुछ मेरा, कुछ उसका,
इस कहानी में हिस्सा था ।
उस खुदा ने ही शायद !
हमें मिलाया था ।
आगाज़ हुआ था जब ,
इस रिश्ते का ,
बना तब , वो रिश्ता ,
गुरू - शिष्य का था !
बदले रिश्ते हमारे ,
एक कविता ने ,
कुछ अल्फाज़ों ने !
हुए तब हम अपने ,
जब गुरु - शिष्य से ,
भाई - बहन बने थे ।
वो मेरे सामने था ,
आखिर से अन्त तक ,
मेरी कविता को उसने सुना था ।
वो कविता जब चरम पर थी ,
लिखी मैंने , उसके लिए ही थी !
सुनने के बाद, कुछ समझने के बाद ,
निर्णय वो ले चुका था !
फिर कह दिया,
"आज से आप मेरी दी हो चुकी "
अब वो लम्हा, वो दिन ,
खुशियों से भर चुका था !
उस भाई के आने से ही ,
आखिरकार !
उसका भी, एक बहन का भी तो !
सपना साकार हुआ था ।
Great siblings love