यही भय था उसका यही भय है मेरा

By Srujana Satyavada

"अकेली चल रही हूँ मैं 
बुलावा नहीं दिया है मुझे छूने का 
रात को घर लौट रही हूँ मैं,
इशारा नहीं दिया है तुम्हारे साथ सोने का 
सज रही हूँ मैं 
शौक नहीं है खुद के लिए 'शब्द' बुलवाने का 
सेहम गयी हूँ मैं 
डर है अपना अस्तित्व खोने का
छूने की बात करते हो? 
यहाँ गन्दी निगाहों से दामन पर वार होता है 
बचने की बात करते हो? 
कैसे? यह तो हर दिन, हर पल , हर बार होता है
मैंने आवाज़ उठाई, तो उन्होंने थप्पड़ से मुझे चुप करा दिया.
मैंने और हिम्मत दिखाई,
तो उन्होंने अपने 'हक़' से मेरा बलात्कार कर दिया.
मेरा शरीर ज़िंदा था पर मैं मर रही थी
मेरा शरीर चीख रहा था और मेरी आत्मा रो रही थी 
बलात्कार किसी की चाहत नहीं होती 
और मौत की हर किसी को आहट नहीं होती
लेकिन उस रात मेरी आत्मा बस यही चीख रही थी की 'ऐ मौत काश तू पेहेले आ गयी होती, क्यों की इस पल तुझ से बड़ी कोई राहत नहीं होती, क्यों की इस पल तुझ से बड़ी कोई राहत नहीं होती "

यही भय था उसका 
यही भय है मेरा 


4 comments

  • cialis online ordering

    Theankess
  • Beautifully!! written…

    Sachin Om Gupta
  • Thank you vaishali :)

    Srujana
  • Great words!!

    Vaishali

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