By Nikita Jain
वो एक बच्चा ही तो है,
लावारिस सा पलता है,
मगर फिर भी मन का सच्चा ही तो है ..
वो एक बच्चा ही तो है,
जो दिल्ली की सड़कों पर अकेला बैठा रोता है,
जो नंगे कमज़ोर बदन पे सर्द हवाओं का लिहाफ लेके सोता है...
जिसके नाज़ुक कान माँ की लोरी की जगह,
सुनते हैं सिर्फ ट्रैफिक का शोर,
और जो हर सुबह हाथ में बस्ते की जगह,
कटोरा लेकर बढ़ता है सिग्नल की ओर..
जहाँ उसकी मासूम आँखे टकटकी लगाये बड़ी ही आस से,
देखतीं हैं गाड़ियों में सवार कुछ कमज़र्फ लोगों को,
के शायद दो पैसे ही मिल जाएं आज रात भूखा पेट भरने को,
फिर उनकी दुत्कार से उसका वो महीन चेहरा मुरझा सा जाता है...
जो चौराहे पे मज़दूरों सा ईंट और पत्थर बेजान कमर पे ढोता है,
जिसका खून पसीना हर रोज़ सड़क पे बहता है,
जिसकी आँखों में भी शायद हम तुम जैसा ख्वाबों का बसेरा रहता है,
वो एक बच्चा ही तो है,
लावारिस सा पलता है,
मगर फिर भी मन का सच्चा ही तो है,
हाँ वो एक छोटा सा बच्चा ही तो है ..
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Well depiction👌👌
Nice work Nikita. You portrayed it really well.
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