वसुधा(धरती) हमारी

By Pinki Mishra
कर्तव्य की देवी हो तुम
अनगिनत उपकार करती हो तुम।।
यूँ तो हम पर इतना जोर है।
हर एक क्षण में इनका प्रकोप है।।
हरियाली तुम देती 
कभी फूल, बाग, बगीचों से,
तो कभी सींचे हुए पेड़-पौधों से,
अंजोर तुम देती
कभी चाँद से,
तो कभी सूरज से,
झरने, नदियाँ, पहाड़ सब तुम्हारी देन है।
उनमें बैहते जीव तुम्हारे धन है।।
गोद में तुम्हारी समाए हैं हम,
तुम्हारे उपकारों के आभारी है हम,
देवी भी हो,माई भी हो
धरती मैया, बस तुम ही तो हो।।
हमारे चेहरे की लालिमा तुम्हारी देन है। 
संभाल कर रखना इन्हें
ये है तभी तो,
भूँ(धरती) पर हमारा निशान भी है।।
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Mother Gaia' 

1 comment

  • Lovely ❤️

    Taruni Bajaj

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