काजल
हां वो कटि प्रदर्शित
नाभि दर्शना साड़ी पहनती है
तो क्यों भूख का स्वरूप बदल जाता है मर्द का
क्यूं भूल जाता है मर्द
अपना जन्म
क्यूं डालता है लोलुप नज़रें
स्त्री पे
इसी नाभि से
गर्भनाल से
नौ माह तक पोषित करती है
एक स्त्री उसको
क्या तब भी
उसकी लोलुप निगाहें
कामातुर होती होंगी
बुरा लग रहा होगा ना पुरुष तुम्हें
मैं कोई नारीवादी नेता
या फेमिनिस्ट नहीं हूं
एक अदद स्त्री हूं....बस
;
!
किन्तु अब समझना होगा
तुम्हें
स्त्री सिर्फ भूगोल नहीं है
विज्ञान भी है
विज्ञ भी है
मां भी है
पुत्री भी है
पत्नी भी है
और संस्कारों का संपूर्ण शब्दकोष भी है
वो अर्थ भी जानती है
और अर्थ समझाना भी जानती है
इसलिए जान लो
महीन सी लकीर है
क्षुधातुर और कामातुर के मध्य
बस इतनी ही जितनी
गर्भनाल और नाभि के मध्य
amzingly written !!!!
Beautifully expressed n well written.
Amazing
Wonderful words👌👌
स्त्री सिर्फ भूगोल नहीं है
सच। 💞
Short and beautiful 💞
Amazing poem!