By Taruni Bajaj
वो जननी है हम बच्चों की
इस संसार की पालन करता है
क्यों झंझोड़ रहे हो उसको तुम ?
वो हमारी करता-धरता है !
मत काटो तुम उसके हाथों को
जो इस नरक को स्वर्ग बनाते है
मत करो बेघर उन जीव-जंतुओं को
जो आश्रय उसका पाते है !
आखिर क्यों हो नष्ट उसका अस्तित्व ?
जो हमारे अंत को मात देती है
समुद्र से बंजर ज़मीनो तक
जो हमको जीवन दान देती है !
जहाँ बाग़ बगीचे रौनक देते
वहां उद्योग खानो का काम नहीं
मत छेड़ो उनके संसार को तुम
ये अपकार है उपकार नहीं !
अम्बर से सागर की गहरायी तक
वो कण-कण अपना खोती है
हम उससे है, वो हमसे नहीं
फिर माँ क्यों सिसक के रोती है ?
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Mother Gaia'
Title🖤
Superb 👌👌
I agree with you. I know this feeling. Wonderful poem: It really captures the topic.