Dhoond raha tha ik kavita main

Dr Ankur Gupta 

ढूँढ रहा था इक कविता मैं,नज़र मुझे जब आइ तुम

लगा कलम अब ख़ूब चलेगी, ऐसी मन पर छाई तुम

ढूँढ रहा था...

 

इस यात्रा में संग चलो अब, तुमको तुमसे मिलवाऊँगा

करने लगोगी प्रेम स्वयं से, दर्पण ऐसा दिखलाऊँगा

अस्तित्व तुम्हारा केवल कुछ क्षण, सौंप दो मेरे लेखन को

आत्म समर्पण करती वर को, बन जाओ नई ब्याही तुम

ढूँढ रहा था इक कविता मैं, नज़र मुझे जब आइ तुम...

 

भेड़ों के इस अनंत झुंड में, तुम हिरणी जैसी लगती हो

घोर अंधकार है चारों ओर, तुम दीपक जैसी जगती हो

बीहड़ वीराने जंगल में , तुम प्राण वायु हो प्राण प्रिये

मीलों बंजर धरती पर, तुम देवी अमृत धार लिए

कर्ण बधिर थे और मूक अधर, पागल करता सन्नाटा था

सात सुरों का संगम बनकर, मधुर गीत ले आयी तुम

ढूँढ रहा था इक कविता मैं, नज़र मुझे जब आइ तुम...

 

मोहपाश में बाँध रही हो, वशीकरण का मंत्र चलाकर

मूर्त रूप हो आकर्षण का, बना रूप रस गंध मिलाकर

कामनाओं को कम्पन देती, देखो जब तुम नज़र बचाकर

आँखों से आलिंगन देती, देखो जब तुम नज़र उठाकर

सर्व कला सम्पूर्ण मोहिनी, नारी की परिभाषा हो

स्वयं नारीतव को धारण कर, ले साक्षात रूप में आयी तुम

ढूँढ रहा था इक कविता मैं, नज़र मुझे जब आइ तुम..

 

तुम कविता हो, या कविता में तुम हो

आजन्म संगिनी ,या केवल सम्मोहन हो

स्वर्ण मृग हो , या हो मृग तृष्णा

निर्णय कठिन ,पर तुमको करना

मैं लेखक हूँ मैं भावुक हूँ, भावना प्रधान प्रेरणा बंधक हूँ

असमंजस है गहरा , कलम मौन प्रतीक्षा करती है

अब निर्णय हो तुम मेरी हो, या थी सदा परायी तुम

ढूँढ रहा था इक कविता मैं, नज़र मुझे जब आइ तुम...

 

धीरे से कुछ तुमने कहा है, सत्य लिखूँगा जो सुना है

कल कल बहती नदी हूँ मैं, झर झर बहता तुम हो झरना

दोनो की अपनी मर्यादा, अलग अलग है बहते रहना

फिर भी अटूट सम्बंध है प्रियतम, नदी या झरना बेमानी है

रूप भिन्न पर एक है आत्मा, बस निर्मल बहता पानी है

 

धन्य हो देवी आभारी हूँ, नमन तुम्हें करता हूँ

प्रत्येक पंक्ति को भेंट रूप में, तुम्हें समर्पित करता हूँ

आरम्भ प्रेरणा मध्य प्रियसी, अंत साधना यात्रा का

परमपिता का आशीष बनकर, मेरी कविता में चली आयी तुम

ढूँढ रहा था इक कविता मैं, नज़र मुझे जब आइ तुम....


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