By Anshika Lall
मैं परदेस में रेहती हूं तो क्या?
मैं परदेस में रेहती हूं तो क्या?
मैं रोज़ महसूस अपने देश की मिट्टी को करती हूं,
इस विदेश में अपने देश की झलक ढूंढती हूं।
दिन में घर जाने के दिन गिनती हूं, और रात में घरवालों की याद में तकिया भिगोती हूं।
इस देश में रह कर परदेसी महसूस करती हूं,
लोगों की भीड़ में खुद को अकेला महसूस करती हूं।
इस देश की चमक मेरी बहनों की आंखों की चमक के आगे फीकी पड़ जाती है,
इस देश की बारिश मुझे मेरे देश की गर्मी की याद दिलाती है।
यह खाली घर मुझे मेरे भरे हुए घर की याद दिलाता है,
हर सांस लेती हूं तो मुझे मेरा बचपन याद आता है।
जब देखती हूं लोगों को तो पीछे छूटे हुए दोस्त याद आजाते हैं, उनसे मिलने का मुझे एक सपना दे जाते हैं।
मैं मिलीं नहीं हूं अपनों से पर ख्यालों में मिल लेती हूं,
मैं खाती हूं रोज़ चावल पर रोटी का सोच लेती हूं,
राहों में अकेले रहबर को याद करती हूं,
मैं परदेस में रेहती हूं तो क्या?
मैं रोज़ महसूस अपने देश की मिट्टी को करती हूं।
Great lines. Keep up the good work!
Wow! I’ve always wanting to write a poem in Hindi. Drawing inspiration from this superb poem…..
Awesome!