ब्रेकअप

कहते हैं, रिश्ते तो गहने होते हैं,
लेकिन, गहने भी तो अक़्सर खो जाते हैं, टूट भी जाया करते हैं।
कुछ ऎसे ही संभाल कर रखा था इक रिश्ता
गले से लगाया था किसी कीमती ज़ेवर कि तरहां
पर करें क्या, इस दुनिया-ए-बाज़ार में
जहां ज़ेवर अपनी कीमतों से अक़्सर गिर भी जाया करते हैं।
फासले तो घटते-बढ़ते रहते इन नौकरी की उलझनों में 
ये 'लौंग डिस्टेंस' के रिश्ते निभाने पड़ते हैं ऎसे कि 
कभी मैं आऊँ मिलने, और कभी तुम भी निकलो मुलाकात के लिए 
फिर भी इक डर है कि, बहुत ज़्यादा अगर घिस जाएं ये तो टूट कर बिखर भी जाया करते हैं। 
ये लगता है कि सजावटी हों चुके हैं कुछ रिश्ते 
सिर्फ महफ़िलों कि चमक में जिन्हें निहारा जाता है 
और फिर 'चाभी-लौकरों' के अंधेरों में गिरफ्त रखा जाता है 
गर पूराने जब हो जाएं, तो नए लाकर गहने इन्हें भुल भी जाया करते हैं। 
आज देखता हूँ कि वो जो गहना था तुम्हारे नाम का,
टूट गया है,
कोशिश तो की थी मैंने, लेकिन अब जोड़ नहीं सकता,
कि इसके कुछ हिस्से खो गए हैं,
ना वो चमक रही है अब, ना वो नयापन है,
घिस कर बस फीकी एक कड़ी सी रह गयी है,
कुछ रहा नहीं इसमें अब, 
इसे 'ब्रेकअप' करते हैं।
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'Breakup'

1 comment

  • Risto ko kavi, bejan chizo se Jodiye …
    Risto ki apni ek jagah hai..

    Mana ki kayi riste adhure rehjatihe …
    Dil me us eshas ke ek alag hi jagah hai..

    Tute huye risto se miltihe Jo Sikh..
    Ubar ke aatihe utni behtar agle riste ki nibh..

    Satarupa

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