By Swati Singh
ख़्वाब सजाए चार दिवारी में
परी ने अपने पर्र फैलाने के
लोगो ने कहा इतना पढ़ा कर क्या करोगे
जो जाएगी दूसरे घर उसपर इतना लूटा कर बहुत भुक्तोगे।
चूल्हे चौके की आग में तपी
निखर कर सोना थी वो बनी
शून्य पे सवार थी वो
ज़मीन गहरी तो आसमान और उचा बना रही थी वो।
आंसू जब आए किसी अपने की आंखो में
देहेक उठे अंदर के शोले
सबक सिखाया, दुर्गा बनी वो
कोमल थी पर कीचड़ का कमाल थी वो।
मरहम लगाकर पोंछे आंसू
रक्षा बंधन का धर्म निभाया
परिया भी कर सकती है घर की रक्षा
ये उसने लोगो को बताया।
सपनों के एक कलम में
स्याही का नया रंग उभरा
लोगो ने कहा पहलवानी इसका काम नहीं
मर्दों से टक्कर लेनी की, एक औरत में बात नहीं।
बिना पीछे मूड आगे बढ़ने लगी
परी ने अपनी पहली उड़ान भरी
योद्धा भाती हर कदम पे लड़ी वो
नदियों से हार कर भी, समंदर जीत गई वो।
प्यार और कामयाबी की मुस्कान में
धीमी बातों ने जगह ली
लोगो ने कहा मार पीट करती है जो
कैसे संवारेगी किसी का घर वो?
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This poem won in Instagram Weekly Contest held by @delhipoetryslam on the theme 'What will people say / Log kya kahenge'
Nice poem😊
Very well versed with a beautiful and strong message.
Beautifully explained
Very nice poem
I like this one. Well written.
Nice social message
This poem is actually than most.. Deserves much more recognition
❤😘
Written very well.
Great thoughts