वो दौर भी क्या दौर था
इंजीनियरिंग के प्रति सबका ज़ोर था
मन तो मेरा कहीं और था
पर पापा को डर था
अगर कभी बात उठे तो।
कर लो इंजीनियरिंग, बाद में देखा जाएगा
ये मौका अच्छा मिला है, फिर ना वापस आएगा
ये जॉब मिलने का सबसे आसान तरीका है
ज़िन्दगी सवार लो, हॉबी में क्या रखा है
पापा का वो डर अब मुझपे भी सवार था
अगर कभी बात उठे तो।
दिन गुज़रे और साल भी, इंजीनियरिंग का कमाल भी
जॉब मिलने की ख़ुशी में, भूल गए दिल का मलाल भी
पापा को तो खुश कर आया
पर वो जो हॉबी थी, उसे ना भूल पाया
सोच लिया था इस बार, कह दूंगा दुनिया से
अगर कभी बात उठे तो।
चल पड़े थे मुम्बई, एक्टर बनने की ख्वाहिश थी
ऑडिशन में फेल हुआ, पर हिम्मत अब भी कायम थी
एक साल की महुलत दी थी पापा ने
वक़्त वो अब कम लगने लगा था
अब तो मुझे भी वो डर था, क्या कहूंगा दुनिया से
अगर कभी बात उठे तो।
आज एक साल बीत गए, बैठा हूं ऑफिस की कंप्यूटर पे
सोचता हूं क्या खोया क्या पाया, पिछले एक साल में
ना इस जॉब की ख़ुशी थी, ना एक्टर ना बन पाने का गम
अपनी हॉबी को जी आए बस, इसे ही तो ज़िन्दगी कहते हैं हम
अब तो मम्मी भी हमारे साथ थी, कहने को दुनिया से
अगर कभी बात उठे तो।
Nicely penned!