By गौरव भटनागर
मेघ धरा लिप्त हैं आज मिलन ऋतु की वर्षा में
झूम रहीं हैं वृक्ष गोपियाँ कान्हा के प्रेम की बरखा में
मेघ धरा लिप्त हैं आज मिलन ऋतु की वर्षा में
झूम रही हैं वृक्ष गोपियाँ कान्हा के प्रेम की बरखा में
तपती विरह का अंत है आज, हर रूठी गोपी कान्हा में लिप्त है आज
तपती विरह का अंत है आज, हर रूठी गोपी कान्हा में लिप्त है आज
हरी ओढ़नी के स्वागत आलिंगन में झूम रही है वायु आज
बरखा प्रेम धुन मल्हार है आज
अमृत संगीत गूँज रहा हर तरफ़ आज
हर कण के साथ रास कर रहे मोरे कान्हा आज
बरसो कान्हा बरसो
स्वागत है बरसो
तरसे नैना भीग रहे हैं आज बाद बरसों
सम्पूर्ण धरा वृंदावन है आज बरसो
हर कण राधा है आज बरसो
स्वागत है कान्हा बरसो