एक चिड़िया थी छोटी सी

By-ज्योति जेठानी

 

एक चिड़िया थी छोटी सी

गुमसुम सी… खामोश सी…

 

आसमान को छूना  चाहती थी

ऊंचा उड़ना चाहती थी

जानती थी कभी ना मिल पायेगा आसमान

फिर भी खुद से लड़ती हुई

 

देखे उसके बदलते रंग

कभी धूप में पीला सा

उसे प्यासा तड़पाता था

 

कभी ख़ुशी में नीला सा

उसे छाया दे जाता था

 

कभी रात में काला सा

उसे डरा कर जाता था

 

कभी प्यार में गुलाबी सा

उसको रंगो से भर जाता था

 

वो प्यार के रंगो में महक सी जाती थी

अपनी नयी खुशबू को फैलाती थी

 

उसके बारिश के पानी से

उसकी मोहब्बत में भीग सी जाती थी

 

उड़ती रही वो उसको पाने को

बस एक बार उसको छू लेने को

मगर वो और दूर सा हो जाता था

 

मैंने देखा उसकी नज़रों को।

कभी थकी हुई... कभी रोती हुई

सबसे  लड़ती हुई... बेगानी होती रही

एक चिड़िया थी छोटी सी 

 

यकीन करना मुश्किल था...

जिसमे बरसो वो उड़ती रही। 

वो आसमान ना कभी उसका था...

 

कहाँ  पता था उस आसमान को कुछ

ना मिल पाने का गम उसे सताता था

अंदर से खोखला-सा कर जाता था

ना हसी थी... ना कोई शिकायत थी

पर उसकी तड़प मैंने देखी थी

एक चिड़िया थी छोटी सी

 

वक़्त गुजरता रहा

दम तोड़ा उसने उसी आसमान की छाया में

नज़रों में ना चाहत छूटी थी

छूने की ना आस छूटी थी

जाते-जाते जैसे कहना चाहती थी

 

"कि काश... उस आसमान को मैं याद रहूं की

एक चिड़िया थी छोटी सी "

 

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