एक लड़की छत पर

By Ashish Saran

एक लड़की रोज़ शाम के वक़्त टहलती है छत पर

अपने आप में मगन नाचती गाती गुनगुनाती शर्म से कोसो दूर

चाँद सी रोशन पतझड़ का मौसम

गलियों की रानी इक शायर की ज़ुबानी

ऐसा गीत जिसके बोल है अनमोल ऐसी है ताल जिसको मिले रखना संभाल

शहद सी मीठी आवाज़ मुस्कुराए तो लगे चढ़ती शराब

मकान बहुत से है पड़ोस मे रहती है उसकी एक पर ही नज़र

नज़र उठायी मैंने तो पता लगा मैं ही हू उसका जान-ए-जिगर

मैने जब नज़रे मिलायी जो कभी नहीं हुआ अब हो रहा है वो शर्मायी

झुकती आँखों धीमी मुस्कराटों ने बताया इश्क़ तो उसे पहले से था यहाँ तो मैं ही परेशान था वक़्त से अंजान था

शुरु हो गई थी उसके घर मे लड़ाई चल पड़ा नया सिलसिला दर्द-ए-जुदाई

रो रही है मुझे याद करके हो गयी छत सुनी उसका इंतज़ार करके

मैं भी शायर था वो ना जाने मेरे ऊपर भी क्या बीती अब तो शायरी भी मेरे से रूठी

बहुत हो गया मे बोला मैनें हिम्मत का दरवाज़ा खोला हाथ थाम लिया उसका बीच लहरों में  बहुत हो गयी दर्द-ए-जुदाई इन दो अलग शहरों में

हाथ थाम लिया उसका फिर दिखी वही हल्की मुस्कान आंसू उसके सुख पलकों से तेज़ हुई धड़कन थम सा गया ये समां जब जाना प्यार क्या है इसस जीवन का आकार क्या है

जीवन भी है खठ्ठे मीठे फलो जैसा इश्क़ मे तकरार ना हुई तो प्यार कैसा?


1 comment

  • Muchas gracias. ?Como puedo iniciar sesion?

    fthdvwpawv

Leave a comment

Please note, comments must be approved before they are published