औरत नहीं जाहांन है वो

By Deepanshu Kala

किन हाथों से लिखूँ मैं 

एक औरत के लिए
माँ भी वो है, बहन भी वो है 
सनम भी वो है दिल लगाने के लिए

उस घूँघट में बिता देती है अपना पूराजीवन 
बिना किसी शिकायत के 
सच्चाई की मूरत होती है औरत 
बिना किसी दिखावट के 

किसने कहा उन्हें समझना है मुश्किल 
तुमने भी नो महीने बिताए है उससे जुड़कर 
अगर जानना चाहते हो उसके मन की बात 
मिलो कभी उससे उसके दिल में उतर कर 

इस दुनिया की ताक़त भी वो है 
है इस दुनिया की वो कमज़ोरी भी 
दुनिया की जननी है वो और विधाता भी 
इस दुनिया की ज़रूरत भी वो है 

ज़िंदगी की जंतो जहत में हमें हँसना भुला देती है 
माँ बहन या बेटी ही होती है वो फ़रिश्ता 
जो बिना मतलब यूँही हमें हँसा देती है 


5 comments

  • Heart touching poem. Keep writing
    Waiting for ur more poems…..

    Akanksha gupta
  • Amazing bruh ! Keep Up Your Poetry !

    Sameer saini
  • Well written fella!!
    Looking forward for your more poems…keep writing?

    Asmita Dhanotia
  • What a beautiful poem seriously heart warming…? Superbly penned? I look forward to read and enjoy more of your thoughts…well done!?

    S.J
  • No words for thisuh are amazing?Always bear in mind that ur own resolution to succeed is more important than any other

    Divya

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